बड़ी नज़ाकत से अपनी मोहोबत को छिपा लेती है
बताती नही है मुझसे पर मुझे ज़रूर आज़मा लेती है
कभी तस्वीरे तो कभी फूल भेजती है मुझे लिफाफे में
मोहोबत नही करती मुझसे ,ये कहकर उंगलिया दबा लेती है
और मेरे किस्सो से ही मेरी कहानिया बना लेती है
जब संवरती है ना तो गले पर काला टिका लगा लेती है
अब इस अदा पर भी दिल न बहके तो किधर जाए
जब मुझसे मिलती है ना तो अपनी ही नज़रे उतार लेती है
अल्फाज़ो की धक्का मुक्की में जज़्बात छिपा लेती है
समझती रहती है मुझको खुदको समझा लेती है
कुछ ना कहने के चक्कर मे बहोत कुछ कहती है
कुछ समझने के फेरे में सब कुछ उलझा लेती है
जब हंसती है ना तो हर गम भुला देती है
छोटी सी ठोकर पे बच्चो जैसे आंसू बहा देती है
बहोत मासूम सी लड़की है इश्क़ की बात नही समझती
पर जब घबराती ही है तो मुझे सीने से लगा लेती है.